काशी पूरी दुनिया में “दुनिया के सबसे पुराने शहर”, एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थ और शिव की नगरी के रूप में विख्यात है, यहाँ पर वैसे तो कई बातें, कई चीजे एवं स्थान बहुत प्रसिद्द हैं लेकिन यहाँ शिव मन्दिर की विशेष महत्ता है। आमतौर पर भी लोगों की बातों में बाबा भोलेनाथ का नाम रहता है। यहाँ कर्दमेश्वर महादेव मंदिर (Kardmeshwar Mahadev Temple) नाम से एक प्रसिद्द एवं वाराणसी का सबसे पुराना है।
Thinkingpad.in के माध्यम से हम आपको कर्दमेश्वर महादेव मंदिर और उसकी महत्ता के बारे में बतायेंगे।
ऋषि कर्दम ने इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की थी इसके कारण ही इसका नाम कर्दमेश्वर महादेव पड़ा। कर्दमेश्वर महादेव मंदिर शहर से थोड़ा बाहर, चितईपुर चौराहे से लगभग 1 किलोमीटर पश्चिम दिशा की ओर अंदर कन्दवा नाम के गांव में एक सुंदर तालाब से घिरा है। यह वाराणसी का सबसे प्राचीन (करीब १ हज़ार वर्ष प्राचीन) शिव मंदिर है इसके बारे में स्कंद पुराण के काशी खंड और पंचकोशी माहात्म्य में भी बताया गया है। यह मंदिर काशी में 11-12 वीं सदी का एकमात्र मंदिर है। काशी विश्वनाथ मंदिर से पहले ही इस मंदिर की स्थापना हुई है।
ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने बनारस में अपना पहला कदम यही कन्दवा गांव में रखा था।
कर्दमेश्वर महादेव मंदिर दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा पंचकोशी यात्रा में पढ़ने वाला पहला मंदिर है मंदिर के बाईं ओर कुछ दूरी पर पंचक्रोशी यात्रियों के लिए धर्मशाला भी है, यहां श्रद्धालु अपनी पंचक्रोशी यात्रा के दौरान एक दिन विश्राम करते हैं। पौराणिक कंदवा सरोवर में स्नान के बाद श्रद्धालु कर्दमेश्वर महादेव का दर्शन कर के पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि कर्दमेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से देव ऋण से मुक्ति मिल जाती है और सरोवर में जिसका प्रतिबिंब दिख जाए उसकी आयु बढ़ जाती है।
मन्दिर का व्याख्यान:
गढ़वाल राजाओं द्वारा बनवाया, नागर शैली में निर्मित यह पंचरथ प्रकार का मंदिर है इसकी तल छंद योजना में एक चौकोर गर्भगृह अंतराल तथा एक चतुर्भुजाकार अर्द्धमंडप है। मंदिर का निचला भाग अधिष्ठान, मध्यभित्ति क्षेत्र मांडोवर भाग है जिस पर अलंकृत तांखे बने हुए हैं। ऊपरी भाग में नक्काशीदार कंगूरा वरांदिका व आमलक सहित सजावटी शिखर है। मंदिर का पूर्वाभिमुख मुख्य द्वार तीन फीट पांच इंच चौड़ा तथा छह फीट ऊंचा है। इसी गर्भृगृह के मध्य ही कर्दमेश्वर शिवलिंग अवस्थित है। गर्भगृह के ही उत्तर-पश्चिमी कोने में छह फीट की ऊंचाई पर एक जल स्रोत है। जिससे शिवलिंग पर लगातार जलधारा गिरती रहती है।
मंदिर की भित्तियों के बारे में चर्चा करें तो उत्कीर्ण मूर्तियों में वामन, अर्धनारीश्वर, ब्रह्मा और विष्णू आदि कई देवी देवता हैं। मंदिर के निकट ही विरूपाक्ष की मूर्ती स्थापित है जिसके समीप कर्दम कूप भी है।
प्रचलित कथाएं एवं मान्यताएँ:
कथा १:
माता सीता हरण के बाद प्रभु श्री राम ने प्रकाण्ड विद्वान, महापंडित, और शिव के अनन्य भक्त रावण का वध किया तो उन्हें ब्रह्म दोष लगा। ऐसे में जब वह लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने के बाद गुरु वशिष्ठ के आदेश पर वह काशी आए और कर्दमेश्वर महादेव का दर्शन किया। महादेव की सपत्नीक परिक्रमा की तब जा कर उन्हें ब्रह्म दोष से मुक्ति मिली। ऐसी मान्यता है की तभी से यहां परिक्रमा की परंपरा चली आ रही है।
कथा २:
सुन्दर सरोवर से घिरे इस मन्दिर के बारे में यह मान्यता है कि ऋषि कर्दम के तपस्या के दौरान किसी बात पर उनकी आंखों में आंसू आ गए और उन आंसुओं ने ही सरोवर का रूप ले लिया।
मान्यता है कि कर्दम ऋषि के बनवाए गए सरोवर में जिसका प्रतिबिंब दिख जाए उसकी आयु बढ़ जाती है।
कथा ३:
कर्दम ऋषि ने यहां कई हजार सालों तक तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने वरदान मांगने को कहा। ऋषि ने पुत्र रत्न की मांग की। उसके उपरांत कर्दम ऋषि ने कर्दम कूप बनवाया और उस पानी में अपनी पत्नी देहुति के साथ स्नान किया, स्नान के बाद दोनों पति-पत्नी युवा हो गए। दंपती से कपिल मुनी उत्पन्न हुए।
कपिल मुनी ने अपने पिता को सांख्य दर्शन का उपदेश दिया। तपस्या के दौरान कर्दम ऋषि की आंखों से आंसू निकले थे और कर्दम तीर्थ बन गया।
कथा ४:
एक कथा के अनुसार एक दिन प्रजापति कर्दम ऋषि शिव की पूजा में ध्यानमग्न थे तब उनका पुत्र कर्दमी अपने मित्रों के साथ तालाब में स्नान करने गया उसी समय घड़ियाल उनके पुत्र को खींच ले गया जिससे कर्दमी के मित्र भयभीत होकर कर्दम ऋषि के पास गए और उनसे यह बात बताई लेकिन कर्दम ऋषि इस बात से प्रभावित नहीं हुए वे ध्यानमग्न ही रहे| ध्यानावस्था में ही वे संसार की सारी गतिविधियों को देख सकते थे| उन्होंने देखा की उनका पुत्र जल्देवी द्वारा सुरक्षित रूप से बचाकर समुद्र को सौप दिया गया है, समुद्र ने उसे आभूषनो से सुसज्जित कर शिवगणों को सौंप दिया जिसे शिवगणों ने शिव की आज्ञा से पुनः यथास्थान पंहुचा दिया| प्रजापति कर्दम ने जब अपनी आँखें खोली तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सम्मुख पाया, उसके पश्चात कर्दम ऋषि के पुत्र पिता की आज्ञा से वाराणसी चले आये, कर्दमी ने एक शिवलिंग स्थापित कर कई वर्षों तक तपस्या की जिससे भगवान् शिव ने प्रसन्न होकर प्रत्येक स्तोत्र का स्वामी घोषित किया..
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By: Team Thinkinpad
Image courtesy: Hemant K. Vishwakarma
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