उनकी तस्वीर कहीं दिल में छुपा कर बैठे,
इश्क में हम तो अपनी जान गँवा कर बैठे।
उनके वादों से बनी थी वो जो कुछ उम्मीदें,
उनके अंदाज़-ए-इश्क़ पर वो लुटा कर बैठे।
आँखों को है क्यूँ इंतज़ार भला अब उनका,
एक नए शख्स से वो दिल को लगा कर बैठे।
दिन निकलते हैं फक्त सुबह कहाँ होती है,
हाल क्या है ये भी सुध-बुध हैं गँवा कर बैठे।
सबसे मिलते हैं हँसी ले के अपने होठों पे,
दर्द-ए-दिल हम तो बहुत खूब छिपा कर बैठे।
उनकी तस्वीर कहीं दिल में छुपा कर बैठे,
इश्क में हम तो अपनी जान गँवा कर बैठे।
रचना : हेमन्त हेमान्ग