कुछ वक्त, कुछ लम्हे यूँ गुज़ारे भी थे।
दर्द था, तन्हाई थी, तमन्नाओं के सहारे भी थे।

खुश हैं जो आज अपने आज से बहुत,
उन आंखों के पानी में कल के नजारे भी थे।

है ख़ामोशियों से ही वास्ता, समझा करें सब मगर,
कभी हमने भी दी थी सदाएं, कुछ नाम पुकारे भी थे।

दर्द है हमारी आंखों में, ठीक समझे तुम,
क्यों नहीं समझे, इनमें कुछ ज़ख्म तुम्हारे भी थे।

साहिल का निशां नहीं, माझी नहीं, कश्ती नहीं,
वो फिर भी समझाते हैं, किस्मत में हमारे किनारे भी थे।

यूं अश्क बहा कर क्या कहर किया आपने,
आंखों से आपकी बहकर जो टूटे, कुछ ख़्वाब हमारे भी थे।

रचना: नम्रता गुप्ता