लिखता हूँ…

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गगन लिखता हूं मैं खुद को, तुझको चांद लिखता हूँ,
मैं खुशियां अपने दामन कि तुम्हारे नाम लिखता हूँ।
मोहब्बत ये नहीं है गर बताओ और क्या होगी,
तुम्हारा नाम धड़कन पर सुबह और शाम लिखता हूँ।
तुझे एहसास भी है क्या मेरी पागल मोहब्बत का,
आंसू के कलम से खत तुझे हर बार लिखता हूँ।
खुदा महफूज़ रक्खे तुझको हर इलज़ाम से मेरे,
मैं अपनी मौत का इल्ज़ाम अपने नाम लिखता हूँ।
मुकद्दर में नहीं है तू तो फिर दीदार तेरा हो,
दिखे तू हर जन्म मुझको यही फरियाद लिखता हूँ।
जो मुझसे ज्यादा गर कोई इबादत तेरी करता हो,
मैं तुझको आज से इस पल से उसके नाम लिखता हूं।

रचना- लीला धर विश्वकर्मा

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