Shooltankeshwar Mahadev, one of the oldest temples in Varanasi has its own importance. It’s said that Lord Shiva protects the city Kashi from the fierce form of Maa Ganga.
शूलटंकेश्वर महादेव:
वाराणसी शहर दक्षिण दिशा में लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर वाराणसी के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरो में से एक है। गंगा घाट पर स्थित यह मंदिर भी एक अलग ही महत्व रखता है। सावन एवं महा शिव रात्रि के दिन इस मंदिर में दर्शन के लिए भक्तो की बड़ी संख्या देखने को मिलती है ।
पहले शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर का नाम माधवेश्वर महादेव था। क्यूँ की माधव ऋषि ने गंगा तट पर भगवान शिव की आराधना और तपस्या कर के शिवलिंग की स्थापना की थी। माधव ऋषि के नाम पर यहाँ का नाम माधवेश्वर महादेव मंदिर का नाम पड़ गया। इसके बाद यहां तपस्या करने वाले ऋषियों-मुनियों ने इस शिवलिंग का नाम शूलटंकेश्वर रखा।
मंदिर में माता पार्वती, हनुमान जी, भगवान गणेश, कार्तिकेय के साथ बाबा नन्दी भी बिराजमान हैं। यहाँ पर लोग हर वर्ष मांगलिक कार्य एवं मुंडन संस्कार कर शूलटंकेश्वर के दरबार में दर्शन करते हैं।
मान्यतया एवं महत्व:
शूलटंकेश्वर महादेव का मंदिर, अगर नहीं होता तो काशी नगरी माँ गंगा के तीव्र वेग में समाहित हो गयी होती। ऐसी मान्यता है की जब माँ गंगा का अवतरण हुआ तो वे बहुत ही तीव्र वेग से काशी की तरफ आ रही थी ऐसा देख भोले की नगरी काशी में उपस्थित सभी ऋषि मुनि घबरा कर रक्षा के लिए भगवान शिव की आराधना करने लगे। तब भगवान शिव प्रकट हुए एवं अपने भक्तों की रक्षा हेतु अपना त्रिशुल को माँ गंगा तरफ फेक दिया जिसके कारण माँ गंगा त्रिशुल के पास आकर रुक गयीं।
इसी कारण माँ गंगा की दिशा भी परिवर्तित हुई और वही से माँ गंगा उत्तर वाहिनी होकर काशी में प्रवेश करती है।
भगवान शिव के त्रिशुल के अवरोध से माँ गंगा को बहुत ज्यादा शूल अर्थात कष्ट हो रहा था तो माँ गंगा ने भगवान से निवेदन किया की वो अपने त्रिशुल को हटा ले, तो भगवान शिव ने माँ गंगा से 2 वचन लिए:
- पहला वचन: माँ गंगा की तीव्र वेग के कारण भगवान शिव ने माँ गंगा से काशी को बिना हानि पहुचाये, काशी को छूते हुए आगे बढ़ेगी।
- दूसरा वचन: जिस प्रकार माँ गंगा का कष्ट भगवान शिव ने त्रिशुल को हटा कर किया, उसी प्रकार माँ गंगा काशी में गंगा स्नान करने वालो का कष्ट हारेंगी एवं स्नान करने वाले श्रद्धालुओ को कोई भी जलीय जंतु हानि नहीं पहुचायेंगी ।
जब गंगा माँ ने दोनों वचन स्वीकार कर लिए तब भगवान शिव ने अपना त्रिशूल वापस लिया। इसी कारण काशी के घाटों पे स्नान करना जलीय जन्तुओ से सुरक्षित माना गया है।
काशी को जानने और ऐसी रोचक जानकारियाँ आपसे साझा करने का हमारा यह प्रयास आप को कैसा लगा, कमेंट में जरूर बताएं।
Team Thinkingpad
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