सनातन संस्कृति में सेक्स का महत्व: रिश्तों और जीवन में संतुलन कैसे बनाए रखें

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आज ThinkingPad प्लेटफॉर्म पर हम आपके साथ “साविता की कहानी” के माध्यम से सेक्स (sex) से जुड़ा एक ऐसा महत्वपूर्ण संदेश साझा करना चाहते हैं, जो न केवल आपके आने वाले कल को बेहतर बनाने में सहायक होगा, बल्कि आपके रिश्तों को भी मजबूत और गहरा करेगा।

सेक्स का महत्व:

सेक्स केवल शारीरिक सुख का माध्यम नहीं है, बल्कि यह जीवन का आधार है। यह सृष्टि की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने और संबंधों को सशक्त बनाने का एक महत्वपूर्ण पहलू है। सनातन संस्कृति में भी, गृहस्थ जीवन को चार आश्रमों में से एक महत्वपूर्ण आश्रम माना गया है, जहाँ पति-पत्नी का शारीरिक और मानसिक संतुलन गृहस्थ धर्म को निभाने के लिए अनिवार्य होता है।

एक सुखद शारीरिक संबंध न केवल शरीर को संतुष्टि प्रदान करता है, बल्कि मन और आत्मा को भी शांति देता है। महिलाओं के लिए, यह मानसिक और भावनात्मक संतुलन प्रदान करने वाले रसायनों को उत्पन्न करता है, और पुरुषों के लिए, यह आत्मविश्वास और स्थिरता का प्रतीक है।

साविता की कहानी: आधुनिक जीवन Vs पारंपरिक मूल्य

कॉलेज के दिनों में, साविता हार्मोनल बदलावों और समाज की नई विचारधारा के बीच उलझी हुई थी। इंटरनेट और फिल्मों से प्रभावित होकर उसने समझा कि पुरुष और स्त्री दोनों की शारीरिक जरूरतें समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। लेकिन उसे यह भी महसूस हुआ कि हमारे धर्मग्रंथ और परंपराएं शादी से पहले शारीरिक संबंधों को अनुचित मानती हैं।

सनातन संस्कृति का मानना है कि हर रिश्ता पवित्र होता है, और शारीरिक संबंधों को केवल विवाह के बंधन में बांधकर ही निभाना चाहिए। यह विचार इसलिए है कि रिश्तों में शुद्धता और स्थिरता बनी रहे। लेकिन उस समय साविता को ये बातें बंधन लगती थीं।

कॉलेज के दौरान उसका एक बॉयफ्रेंड बना। उसने अपनी सहमति से शारीरिक संबंधों का अनुभव किया और इसे जादुई पाया। लेकिन कुछ समय बाद उसका ब्रेकअप हो गया। इसके बाद उसने दूसरे व्यक्ति के साथ भी संबंध बनाए। ये अनुभव उसे थोड़े समय की खुशी तो देते थे, लेकिन अंदर ही अंदर मन और आत्मा को अस्थिर और बेचैन कर देते थे।

विवाह और असंतोष:

समय के साथ साविता की शादी हो गई। शुरू में शादीशुदा जीवन सुखद था, लेकिन धीरे-धीरे उसके मन में शारीरिक संबंधों के प्रति अरुचि होने लगी। जब उसके पति पहल करते, तो वह टालने लगती। इससे उनके रिश्तों में खटास आ गई। उसके पति ने स्पष्ट रूप से कहा, “पति-पत्नी के बीच एक स्वस्थ शारीरिक संबंध रिश्ते को मजबूत बनाता है। तुम्हारा इस तरह दूरी बनाना हमारे रिश्ते को कमजोर कर रहा है।”

इस बात ने साविता को झकझोर दिया। उसने महसूस किया कि शायद उसकी मानसिक स्थिति और पहले के अनुभव इसका कारण हो सकते हैं। वह समाधान की तलाश में ऋषिकेश चली गई।

गुरु मां का मार्गदर्शन:

ऋषिकेश में गुरु मां से मिलने के बाद साविता ने अपनी समस्याएं साझा कीं। गुरु मां ने उससे सीधा सवाल किया, “शादी से पहले कितने पुरुषों के साथ संबंध बनाए हैं?” यह सवाल चौंकाने वाला था, लेकिन साविता ने सच बताया।

गुरु मां ने समझाया, “सनातन संस्कृति में और अध्यात्म में भी शरीर को एक मंदिर माना गया है। जब कोई स्त्री एक से अधिक पुरुषों के साथ संबंध बनाती है, तो उसका शरीर भावनाओं और यादों के द्वंद्व में फंस जाता है। हर व्यक्ति की ऊर्जा हमारे शरीर में छाप छोड़ती है। जब यह ऊर्जा असंतुलित हो जाती है, तो मानसिक और शारीरिक अशांति होने लगती है। यही कारण है कि हमारे पूर्वज शादी से पहले शारीरिक संबंधों से बचने की सलाह देते थे। विवाह एक ऐसा बंधन है, जो प्रेम और समर्पण के साथ संतुलन लाता है।”

सीख और सलाह:

गुरु मां की बातों ने साविता की आंखें खोल दीं। उसने महसूस किया कि शादी से पहले के संबंधों ने न केवल उसकी मानसिक शांति को भंग किया, बल्कि उसके वैवाहिक जीवन को भी प्रभावित किया। आज वह उन लड़कियों से कहना चाहती है:

मॉडर्न सोच की धुंध में बहुत से अनियंत्रित विचार आते हैं, शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाना भी उनमे से एक है। इससे बेशक कुछ वक्त की ख़ुशी या यूँ कहें की मज़ा मस्ती तो जरूर मिल सकता है, लेकिन यह आपके जीवन में अस्थिरता और पछतावा भी ला सकता है। रिश्तों की पवित्रता बनाए रखें और सनातन संस्कृति के सिद्धांतों को अपनाएं। वे हमें सच्चे सुख और स्थिरता का मार्ग दिखाते हैं।

Image Credit: Pixabay

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