मेरे होके, मुझी को सताने लगे…

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मेरे होके मुझी को सताने लगे,
जाने कैसा कहर मुझपे ढाने लगे ,
चोट ऐसी लगी, दर्द दिल को हुआ,
देके ज़ख्मे जिगर मुस्कुराने लगे ।

मुझको गम के हवाले वो करके यहाँ,
दूर जाके कहीं दिल लगाने लगे,
जो भी चाहत के अल्फ़ाज़ हमसे कहे,
आज वो ही कही दुहराने लगे ।

मेरे हर बात पर मुस्कुराते थे जो,
आज हमको ही पागल बताने लगे,
जिसको पलकों पे रखता था दिन रात मैं,
आज हमसे ही नजरें चुराने लगे ।

जाने कैसा कहर मुझपे ढाने लगे
मेरे होक मुझी को सताने लगे।

रचना : लीला धार विश्वकर्मा

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