तरह – तरह के रंग हैं तरह – तरह की बातें,
बूंद – बूंद का रिश्ता है अलग-अलग रिश्ते नाते,
भिन्न – भिन्न सी बोली है, अजब गजब से भी वेश,
लेकिन हम सब एक हैं, अपना अपना अपना परिवेश,
हर एक भाषा श्रेष्ठ है, हर एक भाषा सुंदर,
अपनी हिंदी “मां” जैसी…
ना कोई इसके जैसी…
आओ आज हिंदी का वर्चस्व बढ़ाएं,
वसुधैव कुटुंबकम में हिंदी रच – रच जाएँ ।
रचना: अरविन्द विश्वकर्मा