ऐ जिंदगी, चल फिर एक ख़्वाब सजाते हैं,
ख़ुशी पास नहीं तो क्या गम से दिल लगाते हैं,
जहाँ तू तेरी यादें और तेरा दीदार तक न हो
उस नगर में जाकर के दिल जलाते हैं ।
ऐ जिंदगी, चल फिर एक ख़्वाब सजाते हैं…
दर्द दिल में लेकर के मुस्कुराते हैं,
चैन खोया नींद खोयी जिसकी बाहों के खातिर
आज फिर उन बाहों से दूर हो जाते हैं,
ऐ जिंदगी, चल तुझे वो जहाँ दिखाते हैं।
जहाँ मैं, मेरे आँसू तेरे बिन भी मुस्कुराते है,
प्यार दोस्ती रिश्तों से कहीं दूर जाकर
किसी गम की बस्ती में आशियाँ बनाते हैं,
तू भी थक गया होगा सुन के बक – बक मेरी
आज फिर तुझे ख़ामोश होकर दिखाते हैं।
ऐ जिंदगी, चल फिर एक ख्वाब सजाते हैं…
रचना : लीला धार विश्वकर्मा
7 Comments
Very nice 👏👏
Nice sir
Bhot khub Sr
Good sr
Good
भाई लीला आपके द्वारा लिखी गई कविता ने दिल को छू लिया । बहुत मर्मस्पर्शी कविता।
superb