मौसम की तरह तुम भी बदल गए, तो क्या …

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बदलते मौसम की तरह
तुम भी बदल गए, तो क्या …
अपने वादे से ही तुम भी
मुकर गए तो क्या …

ख्वाहिश थी तेरे संग – संग चलने की
बीच राह में तन्हा छोड़ गए तो क्या।

अब तो मंद -मंद हवा भी
काँटों सी लगती है,
एक आहात भी
तेरे आने की सबब, देती है।

बदल गया तू भी, मौसम की तरह
मुझे बंजर अकेला छोड़ कर,
आज रेत सी जिंदगी
हाथों से फिसल रही, तो क्या …

रचना : अरविन्द विश्वकर्मा

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