सोच का विश्लेषण…

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न जाने कितने साल से दुनिया में हर जगह पर इंसान अपनी सभ्यता को, समाज को, खुद को और अपनी सुविधाओं को अनवरत सुधारते और बढ़ाते हुए आज २१वी सदी के दूसरे दशक में है, आज हम सब खुद को विकसित और विकासशील कहते हैं।

समय – समय पर हर भौतिक चीज और जीवन के हर पहलू की बेहतरी के लिए नयी चीजे / नियम बनाये गए हैं और जरुरी बदलाव किये गए, हम सब इन सभी बदलाव से खुश हैं, लेकिन क्या इस पुरे बदलाव के दौरान, समाज और जिंदगी के तथाकथित सुधार के बाद, क्या सच में हम सभी ने अपनी सोच को भी लगातार सुधारा है ? ये सवाल छोटा तो जरूर है लेकिन गंभीरता और बुद्धिमत्ता से से इसका जबाब ढूंढे तो हम हमारे आज और आने वाले कल की कई सारी परेशानियों को हल कर सकते हैं या परेशानियों से बच सकते हैं।

परेशानी और दुःख ज्यादातर सोच के दूषित होने से ही हैं क्यों की सोच ने ही तो इस दुनिया में नयी दुनिया बनायीं है, उसमे सुधार और बदलाव किये हैं, फिर वो रिश्ते हों, व्यापार हो, व्यवहार हो, ज्ञान – विज्ञान हो या धर्म हो। विचारो का असर जीवन के हर पहलू पर होता है, रिश्तों और स्वास्थ्य पर भी। लेकिन गलत होने पर हम अपनी सोच को दोष देने के बजाय बाकि दूसरी चीजों का दोष देते हैं।

उदहारण के लिए तो अनगिनत बातें है जो की हम सभी के सामने ही हैं, बस ध्यान देने की जरूरत है:

जैसे: फ़ोन और इंटरनेट: जिसकी खुद की कोई सोच नहीं, पूरी तरह से इंसान की सोच पर निर्भर हैं। आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की भी बात करें हो वो भी खुद से कुछ नहीं सोच सकता बस हमारे विचारों को समझने की कोशिश करता है और अध्ययन के आधार पर एकत्रित की सुचना हमें देता और और फिर से उसके बाद का काम हम खुद करते हैं। लेकिन कुछ गलत होने पर हम दोष अपनी सोच और आदतों को नहीं देते बल्कि सारा दोष इन चीजों पर डाल देते हैं।

मशीने जिंदगी की कई सारी जरूरतों / कामो को बेहद आसानी से कर के प्रयास और समय दोनों बचाती हैं, इसी के लिए तो हमने इन्हे इतनी मेहनत और समय लगाकर बनाया है और बना रहे हैं।

उसी तरह कोई और मशीन, शिक्षा, सम्बध, व्यापार, राजनीती, धर्म आदि हम लोगों की जिंदगी को सुचारु और व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए हैं, इनमे कमी नहीं, कमी केवल विचारों की है।

एक सही और सभ्य जीवन के लिए विचारों पर थोड़ा अंकुश होना और सीमाएं होना बेहद जरुरी हैं। रिश्ते, शिक्षा, राजनीति और धर्म से उन्ही बातों की सीमाएं निर्धारित की जाती हैं।

ये सब कुछ एक सोच से बना हुआ है, जैसे: कोई हथियार एक समय पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से बनाया गया था लेकिन आज हथियारों का इस्तेमाल विनाश के लिए ज्यादा होता है। उसी तरह ये बात तो तय है की ये चीजे गलत नहीं, गलत सोच ही है और इसे तो केवल आत्मविश्लेषण, चिंतन और जीवन को समझ कर ही किया जा सकता है।

लेकिन ऐसा नहीं हो रहा, सबको दुनिया पर अपनी सत्ता चाहिए, फिर वो चाहे रिश्ते हो, व्यापार हो, राजनीती हो या धर्म। बची हुई थी शिक्षा जो की इंसान के बेहतर होने के लिए सबसे जरुरी और बुनियादी जरुरत है, उसका लगातार व्यापारीकरण और बनाये गए धर्मों के आधार पर बटवारा किया जा रहा है, वास्तविक ज्ञान से दूर – आज सब कॉलेज की डिग्री मात्र लेने में जुटे हुए हैं।

कोई व्यापार और राजनीति के लिए मरने मारने पर आ चुका है तो कोई अपने धर्म के लिए, सत्ता की भूख सबको ही है।” मेरा ही नियंत्रण दुनिया पर हो ” लेकिन खुद पर कोई अंकुश / नियंत्रण न हो, ये सब सोच रहे हैं। इस बात को भूल कर की इन सब में नुकसान पूरी इंसानियत का है।

लगातार की हुई मेहनत से हम सब बहुत प्रगति कर चुके हैं, विकसित और विकासशील बन चुके हैं और तथाकथित अच्छा भविष्य बनाने में लगे हुए हैं, लेकिन इन सब में इंसानियत को लगातार कम करते जा रहे हैं।

परस्पर प्रेम भाव लगातार कम होता जा रहा है, लालच बढ़ता जा रहा है और ये ही दुनिया में होने वाले किसी भी अपराध का सबसे बड़ा कारण है। समझदार सभी हैं लेकिन अपनी समझ में स्वार्थ की मुहर लगाए हुए। सभी ने अपनी सहूलियत के हिसाब से जीने का तरीका बना रखा है, वो चाहे गलत की क्यूँ न हो।

सवाल ये है की

“जिस भविष्य को बेहतर करने के लिए इंसान इतनी सारी मेहनत, गलतियां और अपराध तक कर रहा है, तो ये सब कर के वो कैसा भविष्य बनाना चाहता है ?

क्या उस भविष्य में सब सुरक्षित महसूस करेंगे ?

आपसी सम्बन्ध सही होंगे ?

तनाव कम होगा ?

इंसानियत बचेगी या फिर इंसानियत के नाम पर बस जिन्दा लोग रहेंगे ?”

इसपे सोचें जरूर, क्यों की आज भी सब बिगड़ा नहीं है एक बहुत अच्छा सुधार किया जा सकता है, जिसकी शुरुवात खुद से ही करनी होगी लेकिन इस बात का ख्याल रखते कि खुद की सोच को बेहतर करने और मन से बुराइयों को निकालने में हम मुर्ख न साबित हो जाए और कोई दूसरा हमें अपनी बुरी सोच का शिकार बना के हमारा अस्तित्व ही खत्म कर दे।

कहने और लिखने को बहुत कुछ है क्यों की इतनी बड़ी बात इतने कम में लिखी नहीं जा सकती लेकिन कितना भी लिख लूँ बात तो समझने वाली है। और वही से ही हर परेशानी का हल भी होगा। जरुरत सिर्फ ईमानदारी से अपनी – अपनी सोच के विश्लेषण की है क्यों की यहां किसी और को जबाब नहीं देना, हमारी जबाबदेही खुद से है।

By: Hemant Kumar Viswakarma (Hemant Hemang)

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