बचकानी सी उन बातों में, बचपन की धुंधली यादों में,
जो वक्त के दौड़ में गुजर गयी, जीवन की उन फरियादों में,
कुछ मस्ती थी, आशाएँ थी, कुछ अलग ही अभिलाषाएँ थी,
जीवन में दुःख और खुशियों की कुछ अलग ही परिभाषाएँ थी।
वो कट्टी – बट्टी यारों से, बातें जो की दीवारों से,
जो बात – बात पर हसते थे, जो बात बात पर रोते थे,
माँ के आँचल के छाँव में, जो चैन की नीद में सोते थे,
यारों के संग-संग मिलकर हम, हर रोज जो ख्वाब संजोते थे।
वो सुबह – सुबह यारों से मिलकर बेतुकी गपशप करना,
जब प्रार्थना ना आये तो, बस यु ही बड़बड़ – बड़बड़ करना,
वो इंटरवल की घंटी पर जी जान से शोरोगुल करना,
वो टीचर का प्यारा बनकर, हीरो जैसे घुमा करना।
वो क्लासरूम में बैठे – बैठे और ही कुछ गड़बड़ करना,
वो दिन ढल कर जब शाम आये तो घर पे भी भाग दौड़ करना,
वो सर्दी – गर्मी की छुट्टी में खूब धमाल शोर करना,
नाना के घर जाकरके वो बदमाशियाँ घनघोर करना।
दिल करता है, फिर से आये वो बचपन की सारी यादें,
वो छुटपन के निश्छल मन से रब से मांगी जो, फरियादें,
ऐ काश के वापस वो दिन दिन हो,
खट्टे मीठे वो पलछिन हो,
वैसे ही सबका प्यार मिले, रिश्तों में वो विश्वाश मिले,
वो बचपन का इतवार मिले, वो खुशियों का संसार मिले,
इस जवाँ उम्र की उलझन में, फिर से अपने इस जीवन में,
मुझे खुशियों का संसार मिले, बचपन फिर से एक बार मिले।
बचपन फिर से एक बार मिले।
रचना: हेमन्त कुमार विश्वकर्मा (हेमन्त हेमांग)