भोलेनाथ की पवित्र नगरी काशी, जिसे वाराणसी या बनारस नाम से भी जाना जाता है; अपने घाटों और मंदिरों के साथ – २ प्राचीन लोककथाओं और पौराणिक कथाओं में अपने उल्लेखों के लिए प्रसिद्ध है। इसका आकर्षण और इस शहर की सांसों में घुली मस्ती अनायास ही लोगों को मोहित करता है। बनारस में यात्रा करने वाले लोग हर बार एक नया अनुभव करते हैं।
वैसे तो बनारस के हर घाट पौराणिक कथाओं से जुड़े हैं और सबकी अपनी आध्यात्मिक मान्यताएं हैं लेकिन इन मान्यताओं में बहुत सारे छिपे हुए रहस्य भी हैं। आज thinkingpad.in प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से हम आपको “नारद घाट” की एक ऐसे ही चौका देने वाली मान्यता के बारे में बताने जा रहे हैं।
नारद घाट का निर्माण दत्तात्रेय स्वामी ने करवाया था और नारद घाट का नाम पौराणिक हिंदू ऋषि नारद के नाम पर पड़ा, शुरुवात में इसे कुवाईघाट के नाम से जाना जाता था। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में इस घाट पर नारदेश्वर (शिव) मंदिर का निर्माण किया गया। इसके बाद से इस घाट का नाम नारद घाट पड़ गया। और यह मान्यता है की नारदेश्वर शिव की स्थापना ऋषि नारद द्वारा ही की गयी थी।
नारद घाट के बारे में यह माना जाता है कि; विवाहित जोड़ों या प्रेमियों को यहां स्नान करने से बचना चाहिए क्योंकि यहाँ स्नान करना उन्हें और उनके रिश्ते को संकट में डाल सकता है। ऐसा कहा जाता है कि इस घाट पर स्नान करने वाले जोड़े अपने रिश्ते को खत्म कर देते हैं और उनके बीच का अंतर लगातार बढ़ता जाता है। उनका रिश्ता तलाक या ब्रेक-अप में समाप्त होता है, इसलिए लोग इस घाट से दूर रहना पसंद करते हैं। ऐसी मान्यता इसलिए है क्यूँ की ऋषि नारद एक ब्रह्मचारी थे और उन्हें इस घाट का आध्यात्मिक स्वामी माना जाता है।
वैसे तो बनारस में लोग गंगा में स्नान करके अपने पापों को दूर करते हैं, और ये ही मान्यता सदियों से चलती आ रही है लेकिन उन सब मान्यताओं के बीच नारद घाट की ये कथा या मान्यता चौकाने वाली है।
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