भारत अपनी संस्कृति और धार्मिकताओं के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्द है। हमारी भारतीय संस्कृति में मनाये जाने वाले हर त्यौहार का कोई न कोई कारण है। वैसे तो भारत में कई सारे त्यौहार मनाए जाते हैं जिनमे से एक ‘अक्षय तृतीया‘ भी एक है जिसके बारे में काफी कम लोग ही जानते हैं।
आज thinkingpad.in प्लेटफॉर्म के जरिये हम आपके लिए अक्षय तृतीया पर्व की पूरी जानकारी लाये हैं।
भारत में अधिकतर त्योहारों की तरह अक्षय तृतीया भी पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है। अक्षय तृतीया के बारे में काफी सारी मान्यताएं प्रचलित है। लोग “अक्षय तृतीया” को “आखा तीज” या फिर “अक्षय तीज” के नाम से जानते हैं लेकिन इसका शुद्ध हिंदी नाम “अक्षय तृतीया” ही है।
अक्षय तृतीया की जितनी मान्यता हिंदुओं के लिए है उतनी ही जैन समुदाय के लोगों के लिए भी है। अक्षय तृतीया को मुख्यतः भारत में ही मनाया जाता है लेकिन इसकी थोड़ी बहुत मान्यता भारत से जुड़े हुए कुछ देश जैसे – पाकिस्तान और नेपाल आदि में भी है लेकिन। कुछ प्रदेशों में इस त्यौहार को विशिष्ट तरीके से मनाया जाता है, इस त्यौहार की मान्यता भारत में सबसे अधिक राजस्थान में है। इसके अलावा मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी इस त्यौहार को धूमधाम से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड शहर में यह त्यौहार 12 से भी अधिक दिन मनाया जाता हैं। यह त्योहार कन्याओं का त्यौहार कहलाता है।
हिंदू पंचांग के मुताबिक अक्षय तृतीया का पर्व वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हर वर्ष मनाया जाता है। हिंदू धर्मग्रंथों में अक्षय तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त, अबूझ मुहूर्त या अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक भी कहते हैं। इसे चिरंजीवी तिथि भी कहते हैं, क्योंकि यह तिथि 8 चिरंजीवियों में एक भगवान परशुराम की जन्म तिथि भी है।
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक इस तिथि पर सूर्य और चंद्र अपनी उच्च राशि में होते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन बिना पंचांग देखे कोई भी मांगलिक काम किया जा सकता है, मान्यता है की इस दिन कोई भी शुभ कार्य करने पर इसका फल कई गुना प्राप्त होता है, कोई भी कार्य कभी निष्फल नहीं होता है।
यही वजह है कि लोग घरों में वैवाहिक कार्यक्रम, धार्मिक अनुष्ठान, गृह प्रवेश, व्यापार, जप-तप और पूजा-पाठ करने के लिए अक्षय तृतीया के दिन को ही चुनते हैं।
शादी के लिए जिन लोगों के ग्रह-नक्षत्रों का मिलान नहीं होता या मुहूर्त नहीं निकल पाता, उनको इस शुभ तिथि पर दोष नहीं लगता व निर्विघ्न विवाह कर सकते हैं। सबसे ज्यादा शादियां इस तिथि पर करने की परंपरा है। कहते हैं कि इस दिन जिनका परिणय-संस्कार (विवाह) होता है उनका सौभाग्य अखंड रहता है। इस दिन महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए भी विशेष अनुष्ठान होता है और इस तिथि पर किए गए दान-धर्म का अक्षय यानी कभी नाश न होने वाला फल व पुण्य मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।
आइए जानते हैं अक्षय तृतीया का इतना महत्व क्यों है।
अक्षय तृतीया को लेकर कई मान्यताएं हैं-
- वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर भगवान विष्णु के छठें अवतार परशुराम भगवान का जन्म हुआ था। परशुराम महर्षि जमदाग्नि और माता रेनुकादेवी के पुत्र थे। यही वजह है कि अक्षय तृतीया के शुभ दिन भगवान विष्णु की उपासना के साथ परशुराम जी की भी पूजा करने का विधान बताया गया है। इस कारण से अक्षय तृतीया का महत्व है।
- राजा भागीरथ के हजारों वर्षों की कठोर तपस्या के कारण अक्षय तृतीया के ही दिन मां गंगा स्वर्ग से धरती पर आईं थी। इस लिए इस दिन का विशेष महत्व होता है। अक्षय तृतीया पर पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है।
- अक्षय तृतीया के दिन ही मां अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी मनाया जाता है। विधिवत इस दिन पूजा और भंडारे का आयोजन किया जाता है।
- अक्षय तृतीया शुभ तिथि पर ही महर्षि वेदव्यास ने महाभारत जैसा महाकाव्य लिखना आरंभ किया था। इसलिए इसदिन का विशेष महत्व है।
- बंगाल प्रांत में इस दिन भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा करके व्यापारीवर्ग नए तरीके से लेखा-जोखा की किताब का आरंभ करते हैं।
- अक्षय तृतीया के अवसर पर वृंदावन के श्री बांकेबिहारी जी के मंदिर में इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं। ऐसा साल में एक बार ही होता है।
- ऐसी मान्यता है कि इसी दिन नर-नारायण ने भी अवतार लिया था।
- स्वयंसिद्ध मुहूर्त होने के कारण सबसे अधिक विवाह इसी दिन होते हैं।
- अक्षय तृतीया से जुड़ी मान्यता के अनुसार सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत अक्षय तृतीया पर ही हुई थी।
- बदरीनाथ धाम के कपाट भी अक्षय तृतीया के दिन ही खोले जाते हैं।
- वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त है, उसमें प्रमुख स्थान अक्षय तृतीया का है। यह हैं- चैत्र शुक्ल गुड़ी पड़वा, वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया, आश्विन शुक्ल विजयादशमी तथा दीपावली की पड़वा का आधा दिन। इसीलिए इन्हें वर्ष भर के साढ़े तीन मुहूर्त भी कहा जाता है।
अक्षय तृतीया के दिन दान का महत्व:
अक्षय तृतीया का दिन धर्म करने का दिन होता है इस दिन दान करना शुभ माना जाता हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन हम जितना दान करते हैं उसका कई गुना बढ़ कर हमें वापस मिलता है। माना जाता है कि इस दिन गृहस्थ लोगों को अपने धन वैभव में अक्षय बढ़ोतरी करने के लिए अपनी कमाई का कुछ हिस्सा धार्मिक कार्यों के लिए दान करना चाहिए। ऐसा करने से उनके धन और संपत्ति में कई गुना बढ़ोत्तरी होती है।
इस दिन खासतौर पर जौ, गेहूं, चने, सत्तू, दही-चावल, गन्ने का रस, दूध के बनी चीजें जैसे मावा, मिठाई आदि, सोना और जल से भरा कलश, अनाज, सभी तरह के रस और गर्मी के मौसम में उपयोगी सारी चीजों के दान का महत्व है। पितरों का श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन कराने का भी अनन्त फल मिलता है।
उम्मीद है thinkingpad.in द्वारा प्रेषित “अक्षय तृतीया” पर्व की ये जानकारी इस पर्व की सभी मान्यताओं एवं महत्वों की पूरी जानकारी आप तक पहुचाने में सफ़ल हुआ। कृपया इस पोस्ट को भी अपने परिचय के लोगों से शेयर कर के उन्हें भी इस पर्व की महत्ता बताएं और हमारा मनोबल बढ़ाएँ।
धन्याद,
टीम थिंकिगपैड