डर को तू डरा जरा

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डर को तू डरा जरा,
न डर उसे आंखें दिखा जरा
खड़ी है सामने मौत तो क्या हुआ,
उठ लड़ न तू घबरा जरा,
क्या हुआ जो हार जायेंगे,
मरना तो है ही एक दिन सभी मर जायेंगे,
मगर जो लड़े ही ना तो कैसे भला जीत पायेंगे,
कह दे तू मौत को नहीं अभी तेरी बारी है,
बहुत जीना है अभी करनी पुरी जिम्मेदारी है,
मैं ही तो कड़ी हूं पीढ़ी नई और पुरानी की,
मुझे ही तो चलानी है रीति नये जमाने की,
कैसे चलूँ मैं तेरे साथ बता जरा,
करनी कितनी बातें अभी मुझे गुजरे जमाने की है,
और अब मुझे न डरा जरा,
छोड़ के मेरा हाथ तु वापस जा जरा,
डर को तू अब डरा जरा।

रचना: अनुपमा सिन्हा 

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