तुझे ढूढंते नगरी नगरी,
भक्त तेरे अज्ञानी है,
बसता है तू मन के भीतर,
ये बात नहीं बस जानी है।
करते है वो कठिन तपस्या,
तुझको पाने की चाह में,
सच्चे मन से ध्यान जो धरते,
पाते तुझे हर राह में।
नहीं बांचते फिर गन्थ किताबें,
रम जाते ऊँ: के जाप में,
हर हर महादेव के नारे से,
धुल जाते मन के पाप रे।
रचना: अनुपमा सिन्हा