आ गयी तब्दीलियाँ मंजिलों और रास्तों में मगर,
आज भी चुपके से सीने में दिल धड़कते हैं कभी – कभी।
कभी सब पाकर भी दिल को चैन नहीं लेने देते ये,
मुस्कराहट की आड़ में कुछ अरमान सुलगते हैं कभी – कभी।
बीते कुछ लम्हों की कसक अभी भी गयी नहीं शायद,
सर्द रातों में आज भी कहीं कुछ सावन बरसते हैं कभी – कभी।
हर आरजू पे दिल को अपने बहुत समझाने के बाद भी,
सामने उनके आ – आ कर इसको परखते हैं कभी – कभी।
बहुत समझाया इस दिल को पर आज ये रुस्वा कर गया,
कैसे समझाएं खुद को कि हम भी बहकते हैं कभी – कभी।
दुनिया की निगाहो में तो समंदर में है ठिकाना हमारा,
है ताज्जुब क्यों एक बूँद पानी को तरसते हैं कभी – कभी।

रचना: नम्रता गुप्ता