दिल धड़कता है…

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सुनाई देती है तेरी आवाज़ मुझको धीरे धीरे क्यों,
मैं जब भी,जहां जाता हूं.दिल में शोर उठता है।
अगर चाहो तो दिल पर हाथ रख कर तुम ज़रा देखो,
जो कल तक मौन था वो आज कितना शोर करता है।
नही है इश्क तुमसे, जाने फिर भी ये कशिश क्या है,
बुझी है आग दिल में,फिर धुआं क्‍यों रोज उठता है।
दवा भी देख ली करके, दुआ का भी असर खाली,
बता अब तू मेरे मालिक, ये दिल मे शोर किसका है।

रचना: लीला धर विश्वकर्मा

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