निगाहों में जो लाए हो, मेरे दिल में यहां रख दो,
नफरत हो मोहब्बत हो, मेरी सांसो में सब रख दो।
हमें तो शाम भी प्यारा, हमें तो राम भी प्यारे ,
हृदय में बसे दोनों, भले कोई भी रब रख दो।
यकीनन इश्क के मंजर को जाती है कई रहें,
धड़कन ढूंढ लेगी सब, भले मंजिल कहीं रख दो।
पुरानी है तो सावन के, मगर महबूब पतझड़ के,
गुलिस्ता हम बसा लेंगे, भले मौसम कोई रख दो।
शमशान से सुनी है, हमारे दिल की यह बस्ती,
बहुत से दफन हैं अंदर, लाओ एक और रख दो।
बुरा तो यकीनन मैं, बुराई साथ रखता हूं,
बुराई सब में निकलेगी, भलाई लाख तुम रख दो।
रचना: लीला धर विश्वकर्मा