इश्क… मेरी कलम से

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आरज़ू, रस्म अदायगी के रिश्तों की नहीं हमे,
चाहत है तो बस यही की दिल से दिल के तार जुड़े रहें।

चलो यूँ कर लेंगे ,
प्यार तुम कर लेना तकरार हम कर लेंगे ,
रूठ तुम जाना मना हम लेंगे ,
बस यूँ ही कट जाएगी ये छोटी सी जिंदगानी ,
हाथ तुम पकड़ लेना साथ हम चल पड़ेंगे।

लगता है बड़ी शिद्दतों से दुवाओं में वो मांग रहा है हमे,
रस्म-ए-मोहब्बत किसी ने तभी तो न अब तक निभाई हमसे।

आरज़ू हमसे ना कर तू हज़ार वादों की,
दो चार ही करेंगे मगर मेरी जान ताउम्र निभाएंगे।

खाते हैं कसमें सभी साथ जीने की,
बस एक हम ही है जो तेरे बाहों में मरने की ख्वाहिश लिए फिरते हैं।

रचना: अनुपमा सिन्हा

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