मेरी माँ

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नरम हाथों से गोद में उड़ाया था जिसने,
अमृत सा दूध चखाया था जिसने,
नजरों ने देखा पहली बार जिसको,
इन आँखों को ये दुनिया दिखाया था जिसने।

अपनी ऊँगली का सहारा दे, चलना सिखाया,
सही गलत का फैसला, उसने बताया,

जाने कहाँ गुम हो गयी ” माँ “… दुनिया की भीड़ में
सोचता हूँ , उसने छोड़ा मुझे
या मैं ही गुम हो गया दुनिया की भीड़ में

आज भी तरसता हूँ … तेरे प्यार को
वापस दे दे मुझे … मेरे संसार (माँ ) को ।

रचना : अरविन्द विश्वकर्मा

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