कल जो बेटी थी आज वो माँ बन गयी
कभी जो आपकी ऊँगली पकड़ कर चला करती थी
आज वो अपने बच्चों को चलाने लगी,
देखकर बच्चों के वो अल्हड़पन
मन ही मन मुस्काने लगी,
बेटी ने जब रखा जवानी में कदम
दुनिया की नज़र उठने लगी,
जो दुनिया से डरा करती थी कभी
आज बेटी के लिए दीवार बन के खड़ी हो गयी,
कभी जो सपने देखा करती थी अपने लिए
आज बेटी में उन सपनों को संजोने लगी,
कभी एक चोट पर कराह उठती थी जो
न जाने कब वो दर्द छुपाने लगी,
कल जो बेटी थी वो आज माँ बन गयी ।
रचना : सीमा केशरी