धुंआ हर तरफ है,
लेकिन आग कही -कही,
जिधर देखो उधर जलन,
मगर बाते बेमतलब की।
लोग बोलने को खाली है,
लोग सुनने को खाली है,
मैं ‘हाँ ‘ तो दूसरा ‘ न’,
कुछ ऐसी ‘राय’ बना ली है।
न निष्पक्ष बोलना है,
न निष्पक्ष सुनना है,
बस अपने को ही,
अच्छा साबित करना है,
निगाहें कही है तो निशाना कही,
धुंआ हर तरफ लेकिन आग…
रचना : सुशील कुमार पांडेय