यादों में अक्स उभरता है ये किसका,
आंखों में झलकती ये किसकी परछाई है?
रौनकें हैं, महफिल है, अपने भी हैं,
कौन नहीं है कि हर तरफ तन्हाई ही तन्हाई है?
होठों पे हैं हंसी और नम हैं आंखें,
ये जहन में किसकी सूरत हौले से मुस्काई है।
अब तक तो लफ्जों की यूँ कमी न थी,
ये क्या बात है जो खामोशी सी छाई है।
अर्से बाद कोई अश्क गिरा है आंखों से,
बता दे ऐ दिल तुझे ये किसकी याद आई है?
रचना: नम्रता गुप्ता