ये शब्दों की व्यथा देखो, जो न कह पाए तो क्या देखो।
शब्दों की सी उलझन है, उलझ जाए तो क्या देखो।
यहां आरंभ शब्दों से, यहां पर अंत शब्दों से।
यहां पर प्रेम शब्दों से, जो हो जाए तो क्या देखो।
अपनो ने ही अपनो के, कलेजे पर रखा खंजर ।
लिखा गीता में ऐसा क्या, ये शब्दों की कला देखो ।
शब्दों का शहर दिल में, शब्दों की सी चिंगारी।
जला कर मुस्कुराता कौन, अपना घर भला देखो।
यहां सम्मान शब्दों का, यहां अपमान शब्दों का ।
छुपा पत्थर में बैठा है, यहां भगवान शब्दों का ।
शब्दों से मुहब्बत है और शब्दों ने छला देखो ।
ये शब्दों की व्यथा देखो न कह पाए तो क्या देखो।
रचना लीला धर विश्वकर्मा