चलो रंगों से करके बात, रंगों को बुलाते हैं।
खुशियों के हसीं रंगों में, मिलकर डूब जाते हैं।
फूलों के सभी रंग आज, अपनो को लगाते हैं।
चलो होली मनाते हैं, चलो होली मनाते हैं।
बधाई दे रही मेरी कलम, अपनों के रिश्तो को।
गिले-शिकवे सभी हम भूल कर के, मुस्कुराते हैं।
फागुन के नशे में धुत्त, फगुनी आज गाते हैं।
आओ रंग लगाते हैं, गुजिया मिलकर खाते हैं।
खुशी के रंग थोड़े से, गमों पर मल के आते हैं।
चलों होली मनाते हैं, चलो होली मनाते हैं।
रचना: लीला धर विश्वकर्मा (अजनबी)