बस यादें रह जाती हैं दिल की सूनी सी गलियों में…

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बस यादें रह जाती हैं दिल की सूनी सी गलियों में,

जन्मों तक रिश्तों के वादे बस यूँ ही गुम जाते हैं
हाथ पकड़ कर चलने वाले राहों में गुम जाते हैं,
संग संग जीने मरने के वादे तो एक छलावा हैं
लोग प्रेम को भूल चुके हैं जीवन की रंगरलियों में।

बस यादें रह जाती हैं दिल की सूनी सी गलियों में,
ना जाने वो कौन वक्त था, जब था हमको प्रेम हुआ
ना जाने वो कहाँ गया, जिनपे था मन को हार दिया,
एक पल में सब अर्पण कर के, एक पल में सब छीन लिया

कहाँ गया वो मुझे छोड़ कर अँधेरी इन गलियों में ?
बस यादें रह जाती हैं दिल की सूनी सी गलियों में,
उसकी बातें और वो वादें हमें नहीं बिसरायी हैं
क्या उनको भी मेरे प्रेम की याद जरा भी आयी है ?

ना जाने किस ओर मुड़ गया, जो था मेरा हमराही
मेरा मन बस टूट गया, उसके मन की अठखेलियों में ।

बस यादें रह जाती हैं दिल की सूनी सी गलियों में।

 

रचना: हेमन्त कुमार विश्वकर्मा (हेमान्ग)

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