मेरे बचपन की कहानी…

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आओ सुनाऊं मैं अपनी जुबानी,
मेरे बचपन की कहानी,
जितना सुनना हो सुने बाकी आपकी महेरबानी,
मैं था सीधा-सादा एक बदमाश सा,
बस करता रहता अपनी मनमानी,
ये था मेरा परिचय अब शुरु करता अपनी कहानी,

छत पे खेलते खेलते गिरा दिया पुरानी दीवार,
आए भईया, बोले क्या हुआ भईया,
मैं बोला कुछ नहीं,इतने में पड़ा एक कंटाप,
दिख गए मुझे चांद सितारे,याद आ गई मेरी नानी,
आओ सुनाऊं मैं अपनी जुबानी,
मेरे बचपन की कहानी,

बरसात का वो दिन बड़ा सुहाना था,
सूखे कपड़े लेने मैं छत पे भागा था,
वहां भी किया मैं शैतानी,
ईट गिरा निकला नाखुन,
खून बह रहा हो जैसे पानी,
सब भूल मुझे थी नाखुन चिपकानी,
आओ सुनाऊं मैं अपनी जुबानी,
मेरे बचपन की कहानी,
जा रहा था थियेटर स्कूल से मार के गुलाटी,
बैठने गया जिस आटो मे,
उसमे पहले से बैठे थे,
भईया और उनके कुछ साथी,
जब लौटा तो स्वागत हुआ बीच रास्ते,
खुद के लगाए पेड़ की कइनी कइनी,
आओ सुनाऊं मैं अपनी जुबानी,
मेरे बचपन की कहानी,
वाक्या तो बहुत है मेरी ज़िन्दगी में,
कुछ खास लम्हें मैने अपनी लेखनी से बताया,
अब आप मुस्कुराओ या न मुस्कुराओ,
ये आप सबकी मनमानी,
आओ सुनाऊं मैं अपनी जुबानी,
मेरे बचपन की कहानी,
ये थी मेरे बचपन की कहानी….!
रचना: अश्वनी सिंह

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