एक हाथ से ताली…

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क्या नाम दूं मैं उस रिश्ते को,
जिस में थोड़ा सा प्रेम नहीं।
बस मतलब से सम्मान मिले,
ना मतलब हो तो वह भी नहीं।
एक हाथ से ताली बजा रहा,
सालों से एक विश्वास लिए।
आवाज़ कभी तो आएगा,
कोई अपना साथ निभाएगा।
फुल जोर लगा कर देख ज़रा,
एक हाथ क्या कर पाएगा।
रिश्ता हो सांसे या ताली,
आवाज विनाशक पीता है।
झूठा विश्वास दिल में,
कोई रिश्ता कब तक जीता है।

रचना: लीला धर विश्वकर्मा

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